टनका/वाका-
(१)
आप्त-व्याप्त छै
भुखमरी आइयो
अनठबै छी
देखि देखि हमहीं
आँखि अँखिअबै छी
(२)
समस्या आप्त
सोलहनी सजल
साहित्यकार
लेखे पुरान छै आप्त
केना एतै यथार्थ
(३)
तोरा पएरे
हम नै जेबो आब
किएक तँ तूँ
भेलेँ लापड़बाह
चऽल कोढ़िक चालि
(४)
अहाँक आँखि
चपेटि लैत अछि
हमर हृदै
औनाए लगैत छी
चारू भुवन हम
(५)
दीन-हीनले
नाटक करैत छी
दया देखा कऽ
दया-सँ-माया बीच
हमहीं फॅसल छी
(६)
रातिक अंत
उदयसँ होइए
दिनक अस्त
दुनूमे भेद कऽ कऽ
अजस धड़ैत छी
(७)
पग पगहा
बाट-बटोही-घाट
ढाठ बनैए
अकर्म कर्म बूझि
जे धारण करैए
(८)
जीवन रस
कालचक्र ओझल
केने आएल
दिन-रातिक भेद
तखन तँ हएत
(९)
लत्ती अमर
आँखि मारि-मारि कऽ
कहैए आबो
फल विहुन हम
रहल रहब आबो
(१०)
सातम तल
धरती सजल छै
पातालपर
अकासो सात खण्ड
मर्त देव लोक छै
(११)
बाट-बटोही
बाटे-बाट ढहना
हँसि-खेल कऽ
सभ साँझू पहर
ठेही मेटबैत छै
(१२)
बीआ अॅकुर
बढ़ैत बनल गाछ
पौरुष पाबि
सन्हिया धरतीमे
बनौलक जिनगी
(१३)
देखि तुलसी
अनन्त सरोवर
उमरि झील
हुलसि-हुलसि कऽ
नाचि-नाचि गबैए
(१४)
अश्रु सजि कऽ
अनन्त कमल बीच
प्रेम पसारि
अमृत सजबैए
सेज-सजा कऽ छाती
(१५)
बर्खाक बून
धारसँ मिलि धारा
धर-धरा कऽ
अपना गतिये ओ
चलए चाहैत छै
(१६)
अकास बीच
स्वर्ग-नरकक छै
संसार आप्त
रचि बसि संसार
भाग्य बनल आश
(१७)
तामि कोड़ि कऽ
परती-पराँत बीच
भोगक चास
बनि-बनि भेल छै
ऊँचका बास-डीह
(१८)
साटि-साटि कऽ
सहे-सहे बनल
हुच्ची सदृश
एका-एकी मेटए
हँसैत खनदान
(१९)
सिरजि रूप
शिखर सौन्दर्यक
देखि बिहिया
आनि जगबैए ओ
अपन सजबैए
(२०)
प्रेमीक रूप
जमुनामे सौरभ
पाबि प्रकाश
चढ़ि-चढ़ि कऽ आबि
सभकेँ ओ देखैए
(२१)
कहू केहेन
मिथिला जेहेन छै
दसो दिशाक
धरती नभ बीच
किसान-बोनिहार
(२२)
रंग-बिरंगी
मने हेराएल छै
दृष्टि धरती
आत्मिक-भौतिक ओ
दैवी रूप बनल
(२३)
आगत देखि
तीनूक तकरार
तत्व कहैत
चिक्कन चालि चलैत
परखि-परखि जीबू
(२४)
हारि-जीतक
अजीब ऐ सृष्टिक
मन ने माने
जोग-भोग सिरजि
विपरीत चलए
(२५)
सोचि-विचारि
नापि चलि बाटकेँ
जोतिते चास
चलि-ससरि चलू
लाट बना संगमे
(२६)
बिर्रोमे उड़ि
दोगे-सान्हिये पड़ा
मातृभूमिसँ
पुरुषत्व गमा कऽ
बौआ रहल अछि
(२७)
फूल जहिना
सभतरि फूला कऽ
गंध बँटैले
संग कए बसात
नभ बीच चलैत
(२८)
नदी गोंगिऐ
कमल केर फूल
रँग बदलै
रौद लगलापर
उज्जरो भऽ जाइत
(२९)
बोनिहारिन
केर सोणितक छै
सड़कपर
देल अलकतड़ा
नै छै ओकरे पता
(३०)
फूस घरक
छप्पड़पर ठाठ
तीन आसक
खढ़, खपड़ा, चार
एसबेस्टस आब
(३१)
चाकक एक
हाथ परहक दू
माटि सानि कऽ
खपड़ा बनैत छै
थोपुआ आ नरिया
(३२)
दुनू मिला कऽ
ठाठपर पड़ै छै
रौद बर्खासँ
रच्छा करै छै घर
तैमे लोक रहैए
(३३)
रौद वसात
शीतलहरी धुनि
गरमी जाड़
वसंत-सँ-वहार
मिथिलाक इयार
(३४)
जाड़ मासमे
शीतलहरी धुनि
अबै-जाइए
कनकन्नी होइ छै
थरथरी धड़ै छै
(३५)
हरिअरका
डग-डगीसँ भरि
जाइत अछि।
करगर रौदसँ
रोहनि सभ साल
(३५)
बैंग बजैए
टर्र-टर्र रटैत
घोघ फल्का कऽ
उछलि-उछलि कऽ
तड़ैप-तड़ैप कऽ
(३५)
अगम पानि
जीवक जिजीविषा
उहापोहसँ
बनल स्थिति अछि
अप्पन आन भेल
(३६)
कदम फूल
सभरँगा रँगसँ
शोभित छै
झड़ैत रहैत छै
समए समैपर
(३७)
दिन-रातिक
बीच संसार अछि
विचार बीच
मेघौन आप्त छैक
उग्रास व्याप्त छैक
(३८)
खने मेघौन
खने उग्रास भऽ भऽ
चलैत-चलि
कारी घटा बनि कऽ
बुन-बुन सागर
(३८)
अकास मार्ग
ठनका आ पाथर
नचि-निच्चाँ
किनछड़ि बिरजि
परिचए दइए
(३९)
चढ़ि अखार
दिन-राति सुगंध
महमहबए
पड़िते फुहारसँ
चारूकात अम्बार
(४०)
भीर-कुभीर
छिड़ियबए क्षीर
सदति संग
ससरए समीर
राग-विरागक
(४१)
विशाल क्षेत्र
रंग-रंगक फूल
फूलाएल छै
दृष्टि बिनु आन्हर
देखिनिहार लोक
(४२)
गाछीक बीच
हजारो वृक्ष आप्त
सबुर गाछ
मेवा फड़ैत छैक
नजरिक कमाल
(४३)
खेल खेलक
कालक बनाओल
खेले विचित्र
दिन-राति चलि कऽ
मतिये बदलैए
(४४)
धरती संगी
संग मिलि हँसए
मातृभूमिकेँ
सेवा कऽ जगबैए
जगेनिहार मात्र
(४५)
आगि पजरि
तड़पि छटपटा
धरती फाड़ि
ज्योति पबैले जीव
निकलए लगैत
(४५)
गाछ-सँ-फूल
सिरजि सजबैए
शक्तिक संग
जिनगीक परीक्षा
साधक सजबैए
(४६)
माघ मासक
राति सतपहरा
दर्शन पाबि
सहन सिरजि कऽ
राति-दिन हँसए
(४७)
अद्भुत खेल
विधाता बनाओल
आँखि-मिचौनी
राति दिन बदलि
दिन राति बनैए
(४८)
वसन्त राग
नव सूत जेबर
भरैत कहए
सदिखन जिनगी
परखैत चलए
(४९)
समए संग
गति-मति चलिते
ग्रह-नक्षत्र
दोहरी बाट बनि
अन्हार इजोतक
(५०)
तमाशा बनि
कंगाल बनल छै
सपना बीच
सपनाए रहल
दिशाहीन देशक
(५१)
खुशी खुशीक
दुनियाँ बनल छै
धीया-पुताक
देखि-देखि नचैत
कथनी बीच भेद
(५२)
लुत्ती छिटकि
ठौहरीक धधड़ा
करिया धुआँ
जीव-जन्तु पड़ाइ
धीरजसँ सहैत
(५३)
शीतल नोर
झहड़ि-झहड़ि कऽ
कहैए सुना
मनक ताप बीच
पटबैत रहबै
(५४)
रग्गरक छै
पसरल वनमे
धधड़ा-धुआँ
अश्रु करूआइते
पड़ाइ छै जीव
(५५)
वेदन वाण
योग-िवयोग बीच
लह-लहा कऽ
हफैत हवा बीच
नयन नीर ज्योति
(५६)
कोमल कली
लहलहाइ जब
शीतल पाबि
श्रृंगार सजबैत
जुआनी पबिते ओ
(५७)
गुण धरम
देखि पड़ैए तब
मधुर प्रेमी
कर्मक संग भाव
अनैए जब तब
(५८)
हँसि गाबि कऽ
जगत जननीकेँ
सेवा करैए
आदिसँ राति-दिन
मिथिला केर वीर
(५९)
वंशक वृक्ष
लतरि-पसरि कऽ
विशाल बनि
कोसी-कमला बीच
बलिदान करैए
(६०)
बाते-बातमे
झगड़ैए तानि कऽ
नइ रहैछ
कल्याणक माइन
रावणक सखाकेँ
(६१)
सृजए नित
सौहार्दक बाट ओ
जननी प्रेमी
बूझि-बूझि मर्म ओ
नूतन घाट दुर्गक
(६२)
लइते जन्म
धरतीपर आबि
अकास बीच
चक्रक चक्का जानि
नूतन बाट बना
(६३)
धारी अनेक
दुर्ग सेहो अनेक
शक्ति-सँ-शक्ति
सटि-सटि करैछ
पार बटोही ओर
(६४)
सुख-संतोष
सरोवर बनैए
रूप करम
सदि लीला करैए
बनल सत् कर्म
(६५)
ठूठ अपन
करनीसँ भेल छै
बाँस सभटा
उजरा बगुलाक
फेरमे पड़ि-पड़ि
(६६)
दूध अमृत
आषब-अरिष्ट भऽ
जीवन दान
करैत मुदा गाए
पशु बनि जीबैए
(६७)
पौरुष पाबि
रोकए नै केकरो
बाट-घाट ओ
सिरजि-सिरजि कऽ
नित नूतन घाट
(६८)
एक वनमे
लतड़ि पसरि कऽ
पसरि विश्व
काटि-छाँटि कऽ बाट
बाटे ले झगड़ैए
(६९)
अछि कतेक
कल्पना यर्थाथमे
अन्तर बूझि
लगा रहलौं नहा
घामसँ स्वयं हम
(७०)
अखन अहाँ
रंग-रंगक फूल
सदृश बनि
बनल फूले जकाँ
आप्त-व्याप्त छी अहाँ
(७१)
हमर प्राण
थर-थर कपैए
बनि लहाश
चुपचाप ठाढ़ भऽ
देखि रहल अछि
(७२)
बबाजी बीच
पसरल जहिना
सेवा धरम
समाज सेवी बीच
गरीब-गरीब छै
(७३)
पाबि सकलौं
जिनगी अकारथ
बनि-बनि कऽ
बाट धेलौं अपने
भीतर घात भेल
(७४)
जरना बनि
सील बनल छैक
रश्मि-सँ-रश्मि
हँसि-हँसि जरै छै
मुर्दो बनि हँसै छै
(७५)
हमरा पाछू
धेने रहैत अछि
हरेक छन
उठैत-बैसैत ओ
कखनो नै छौड़ैए
(७६)
चलि-चलि कऽ
जिनगीक
डगर
चलिते
चल
पृथ्वी
नक्षत्र जकाँ
चान-सूर्यक
गति
(७७)
समए
संग
गति-मतिसँ
चलि
ऋतु सदृश
बढ़ि
अनवरत
गंगा-यमुना
जकाँ
(७८)
जस अजस
एतइ
छोड़ि-छाड़ि
चलि
जाइए
गति-विधि
प्रकृति
मनुखो
तँ सएह
(७९)
विश्वास
संग
साहस-सँ-संतोष
साटि-साटि
कऽ
प्रकृति
सुर-ताल
बदलैत
मौसम
(८०)
कुशल
फूल
रंग
चढ़ि ललिया
पान
करैत
भ्रमर
रस पीब
भऽ दिवा रसराज
(८१)
पूजा
आसन
देखि
राग-रागिनी
सुर
सजि कऽ
सिंघासनो
बनैत
चटाइयो
बनैत
(८२)
भक-इजोत
कनखियाइत
छै
चानमे
जेना
इजोत-अन्हार
छै
सियाही-रोशनाइ
(८३)
कहि
रोशन
टघरि
सियाह भऽ
जअ जहिना
तिले-तिल
तिलकि
कुंड
बनि जरैत
(८४)
भूमि जमन
नानी-दादीक
खिस्सा
हृदैमे
गंग
ऋृतु
मिथिला सन
चान-तरेगन
छै
(८५)
जीत-जिनगी
जंगल
बनि दंभ
मंगल
आस
धारण कऽ करैए
दिन-रातिक
भेद
(८६)
उबटन
सदि
बाल
देह लगैए
जेबर
बनि
चेतन
देह चढ़ि
रीत-नीति
कहैए
(८७)
बाम-दहिन
बाँहि
पकड़ि धोबि
पाट
पटकि
धफाड़ि
पानि डूमा
पटकैत
एलैए
(८८)
खेत
जजाति
मुड़हन
दोहन
तेहन
सजि
कोणे-काणी
हिया कऽ
राखी ओ
सजबैए
(८९)
आंगन
आबि
जनदार
बास ले
रूप-कर्म
भऽ
कर्म-शब्द
सजैए
बोलती
बनि-बनि
(९०)
मोड़ि मनुआँ
बनि-बनि शिकारी
वीन बजेलौं
दिने बहकि गेलौं
बाटे
भोतिया गेलौं
(९१)
ठाढ़े
ठिठुरि
पाबि
रौद लू-लुआ
समए
पाबि
बनि
बरखा बाढ़ि
समुच्चा
दहा गेलौं
(९२)
सर-समांग
एकोटा
ने देखै छी
असे-आससँ
स्वागत
करैत छी
आसा
जुड़ा कहै छी
(९३)
संग-सुसंग
आस
मारि बेआस
छी
समर्पित
भव-भार
भरि कऽ
अबैत
रहल छी
(९४)
चालि
कुबुधि
चलि-चलि
कऽ छका
सुबुधि
पर
आइ
भारी पड़ैए
छगुन्तामे
उमड़ि
(९५)
जेकर
लूरि
वंश
धड़ैत अछि
भक-इजोत
टपि-टपि
हँसैए
थाहि-थाहि
बढ़ैए
(९६)
रंग
रहस्य
सुरतानि
कहै छै
मानवते
छी
सभसँ
पैघ रस
वेद-भेद
रहस्य
(९७)
मरण
देखि
तिलमिला
जाइ छी
तारन
पाबि
सकबेधल
रहि
अपनाकेँ
पबै छी
(९८)
बीच
पानिमे
चलनि
भऽ चालनि
पकड़ि
पाँखि
गछाड़ल
रहलौं
चलिआइत
एलौं
(९९)
क्षण-पलमे
जीअन-मरण
छै
अमृतो
पीब
नरक-स्वर्ग
द्वार
टपए
पड़ैत छै
(१००)
बाड़ि
देलक
टारि
देलक सम
बनि
बदलि
फँसि
जालमे सभ
साँप-अन्हैमे
भेद
(१०१)
समए संग
संगी भऽ चलि संगे
भाग्य-करम
पगडंडी बनि कऽ
आगू नचैत पग
(१०२)
सजीव रस
बिनु चिखने नृह
केना बूझब
पताल ऊँपर छै
सजल ई धरती
(१०३)
पानि पाथर
बनि बनैत जब
धारा धारक
अड़कन धड़ैत
एक-एक पाथर
(१०४)
बिला बुइध
जेम्हरे जे चललौं
पहुँचि गेलौं
छोड़ि मनोकामना
गाबै छी झूमि-झूमि
(१०५)
नवका चालि
चलि-चलि कऽ जाल
फेकैत
एलौं
कखनो
अर्थ-जाल
कखनो
शब्द-जाल
............
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