शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हाइकू/टनका- उमेश मण्डल


हाइकू/टनका- उमेश मण्डल

आप्तू-व्या प्तर छै
भुखमरी आइयो
अनठबै छी
देखि‍ देखि‍ हमहीं
आँखि‍ अँखि‍अबै छी।


समस्याछ आप्ति
सोलहनी सजल
साहि‍त्यआकार
लेखे पुरान छै आप्तर
केना एतै यथार्थ।




तोरा पएरे
हम नै जेबो आब
कि‍एक तँ तूँ
भेलेँ लापड़बाह
चऽल कोढ़ि‍क चालि।

अहाँक आँखि‍
चपेटि लैत अछि‍
हमर हृदै
औनाए लगैत छी
चारू भुवन हम।



दीन-हीनले
नाटक करैत छी
दया देखा कऽ
दया-सँ-माया बीच
हमहीं फॅसल छी।



राति‍क अंत
उदयसँ होइए
दीनक अंत
अस्त  होइए
दुनूकेँ भेद कऽ कऽ
अजस धड़ैत छी।

पग पगहा
बाट-बटोही घाट
ढाठ बनैए
कर्म आ अकर्म नै
जे बूझि‍ चलैए।





जीवनक रस
कालचक्र ओझल
केने आएल
दि‍न-राति‍क भेद
तखन तँ हएत।



हरि‍अर लत्ती
आँखि‍ मारि‍-मारि‍ कऽ
कहै छै आबो
फल वि‍हुन हम
रहल रहब आबो।

सातम तल
धरती सजल छै
पातालपर
अकासो सात खण्ड
मर्त देव लोक छै।



बाट-बटोही
बाटे-बाट बौआइ छै
हँसि‍-खेल कऽ
सभ साँझू पहर
ठेहि‍याए चाहैए।


बीआ अकुर
बढ़ैत बनल गाछ
पौरुष पाबि‍
बनाओल जि‍नगी
सन्हि ‍या धरतीमे
बनौलक जि‍नगी।

देखि‍ तुलसी
अनन्त  सरोवर
उमरि‍ झील
हुलसि‍-हुलसि‍ कऽ
नाचि‍-नाचि‍ गबैए।



अश्रु सजि‍ कऽ
अनन्त  कमल बीच
प्रेम पसारि‍
अमृत सजबैए
सेज-सजा कऽ छाती।



बर्खाक बून
धारसँ मि‍लि‍ धारा
धर-धरा कऽ
अपना गति‍ये ओ
चलए चाहैत छै।

अकास बीच
स्वसर्ग-नरकक छै
संसार आप्ति
रचि‍ बसि‍ संसार
भागक बनल आश।



तामि‍ कोड़ि‍ कऽ
परती-पराँत बीच
भोगक चास
बनि‍-बनि‍ भेल छै
ऊँचका डीह-बास।



साटि‍-साटि‍ कऽ
सहे-सहे बनल
हुच्चीा सदृश
एका-एकी मेटए
हँसैत खनदान।

सि‍रजि‍ रूप
शि‍खर सौन्द‍र्यक
देखि‍ बि‍हि‍या
आनि‍ जगबैए ओ
अपन सजबैए।



प्रेमीक रूप
जमुनामे सौरभ
पाबि‍ प्रकाश
चढ़ि‍-चढ़ि‍ कऽ आबि‍
सभकेँ ओ देखैए।



कहू केहेन
मि‍थि‍ला जेहेन छै
दसो दि‍शाक
धरती नभ बीच
किसान-बोनि‍हार?

रंग-बि‍रंगी
मने हेराएल छै
दृष्टिर‍ धरती
आत्मिि‍क-भौति‍क ओ
दैवी रूप बनल।



आगत देखि‍
तीनूक तकरार
तत्वक कहैत
चि‍क्कन चालि‍ चलैत
परखि-परखि जीबू।



हारि‍-जीतक
अजीब ऐ सृष्टिर‍क
मन ने माने
जोग-भोग सि‍रजि‍
वि‍परीत चलए।

सोचि‍-वि‍चारि‍
नापि‍ चलि‍ बाटकेँ
जोति‍ते चास
चलि‍-ससरि‍ चलू
लाट बना संगमे।




बिर्रोमे उड़ि‍
दोगे-सान्हि़‍ये पड़ा
मातृभूमि‍सँ
पुरुषत्व‍ गमा कऽ
बौआ रहल अछि।



फूल जहि‍ना
सभतरि‍ फूला कऽ
गंध बँटैले
संग कए कऽ बसात
नभ बीच चलैत।

नदी गोंगि‍ऐ
कमल केर फूल
रँग बदलै
रौद लगलापर
उज्जलरो भऽ जाइत।



बोनि‍हारि‍न
केर सोणि‍तक छै
सड़कपर
देल अलकतड़ा
नै छै केकरो पता।



फूस घरक
छप्पघड़पर ठाठ
तीन आसक
खढ़, खपड़ा, चार
एसबेस्टेस आब।

चाकक एक
हाथ परहक दू
माटि‍ सानि‍ कऽ
खपड़ा बनैत छै
थोपुआ आ नरि‍या।



दुनू मि‍ला कऽ
ठाठपर पड़ै छै
रौद बर्खासँ
रच्छार करै छै घर
तैमे लोक रहैए।


रौद वसात
शीतलहरी धुनि‍
गरमी जाड़
वसंत-सँ-वहार
मि‍थि‍लाक इयार।


जाड़ मासमे
शीतलहरी धुनि‍
अबै-जाइए
कनकन्नी होइ छै
थरथरी धड़ै छै।



हरि‍अरका
डग-डगीसँ भरि‍
जाइत अछि।‍
करगर रौदसँ
रोहनि‍ सभ साल।




तोरा पएरे
हम नै जेबो आब
कि‍एक तँ तूँ
भेलेँ लापरवाह
चऽल कोढ़ि‍क चालि।


अहाँक आँखि‍
चपेट लैत अछि‍
हमर हृदै
औनाए लगैत छी
चारू भूवन हम।



बैंग बजैए
टर्र-टर्र रटैत
घोघ फल्का कऽ
उछलि‍-उछलि‍ कऽ
तड़ैप-तड़ैप कऽ।



अगम पानि‍
जीवक जि‍जीवि‍षा
उहापोहसँ
बनल स्थि-‍ति‍ अछि‍
अप्पसन आन भेल।


कदम फूल
सभरँगा रँगसँ
शोभि‍त छै
झड़ैत रहैत छै
समए समैपर।



दि‍न-राति‍क
बीच संसार अछि‍
वि‍चार बीच
मेघौन आप्तक छैक
उग्रास व्याऽप्ता छैक।



खने मेघौन
खने उग्रास भऽ भऽ
चलैत-चलि‍
कारी घटा बनि‍ कऽ
बुन-बुन सागर।


अकास मार्ग
ठनका आ पाथर
नचि‍-नि‍च्चाँऽ
कि‍नछड़ि‍ बि‍रजि‍
परि‍चए दइए।


चढ़ि‍ अखार
दि‍न-राति‍ सुगंध
महमहबए
पड़ि‍ते फुहारसँ
चारूकात अम्बाुर।


भीर-कुभीर
छि‍ड़ि‍यबए क्षीर
सदति‍ संग
ससरए समीर
राग-वि‍रागक।


वि‍शाल क्षेत्र
रंग-रंगक फूल
फूलाएल छै
आँखि‍ बि‍नु आन्ह र
देखि‍नि‍हार लोक।


गाछीक बीच
हजारो वृक्ष आप्तह
सबुर गाछ
मेवा फड़ैत छैक
नजरि‍क कमाल।


खेल खेलक
कालक बनाओल
खेले वि‍चि‍त्र
दि‍न-राति‍ चलि‍ कऽ
मति‍ये बदलैए।


धरती संगी
संग मि‍लि‍ हँसए
मातृभूमि‍केँ
सेवा कऽ जगबैए
जगेनि‍हार मात्र।


आगि‍ पजरि‍
तड़पि‍ छटपटा
धरती फाड़ि‍
ज्यो ति‍ पबैले जीव
नि‍कलए लगैत।


गाछ-सँ-फूल
सि‍रजि‍ सजबैए
शक्तिफ‍क संग
जि‍नगीक परीक्षा
साधक सजबैए।


माघ मासक
राति सतपहरा
दर्शन पाबि‍
सहन सि‍रजि‍ कऽ
राति‍-दि‍न हँसए।


अद्भुत खेल
वि‍धाता बनाओल
आँखि‍-मि‍चौनी
राति‍ दि‍न बदलि
दि‍न राति‍ बनैए।


वसन्तत राग
नव सूत जेबर
भरैत कहए
सदि‍खन जि‍नगी
परखति‍ चलए।


समए संग
गति‍-मति‍ चलि‍ते
ग्रह-नक्षत्र
दोहरी बाट बनि‍
अन्हा र इजोतक।

तमाशा बनि‍
कंगाल बनल छै
सपना बीच
सपनाए रहल
दि‍शाहीन देशक।

खुशी खुशीक
दुनि‍याँ बनल छै
धीया-पुताक
देखि‍-देखि‍ नचैत
कथनी बीच भेद।

लुत्ती छि‍टकि‍
ठौहरीक धधड़ा
करि‍या धुआँ
जीव-जन्तुक पड़ाइ
धीरजसँ सहैत।

शीतल नोर
झहड़ि‍-झहड़ि‍ कऽ
कहैए सुना
मनक ताप बीच
पटबैत रहबै।

रग्गतरक छै
पसरल वनमे
धधड़ा-धुआँ
अश्रु करूआइते
पड़ाइ छै जीव।

वेदनक वाण
योग-ि‍वयोग बीच
लहलहाइत
हफैत हवा बीच
नयन नीर ज्यो ति‍।


कोमल कली
लहलहाइए तब
शीतल पाबि‍
श्रृंगार सजबैत
जुआनी पबि‍ते ओ।

गुण धरम
देखि‍ पड़ैए तब
मधुर प्रेमी
कर्मक संग भाव
अनैए जब तब।

हँसि‍ गाबि‍ कऽ
जगत जननीकेँ
सेवा करैए
राति‍-दि‍न आदि‍सँ
मि‍थि‍लाक वीर।

वंशक वृक्ष
लतरि‍-पसरि‍ कऽ
वि‍शाल बनि‍
कोसी-कमला बीच
बलि‍दान करैए।

बाते-बातमे
झगड़ैए तानि‍ कऽ
नइ रहैछ
कल्याैणक माइन
रावणक सखाकेँ।


सृजए नि‍त
सौहार्दक बाट ओ
जननी प्रेमी
बूझि‍-बूझि‍ मर्म ओ
नूतन घाट दुर्गक।

लइते जन्मद
धरतीपर आबि‍
अकास बीच
चक्रक चक्का जानि‍
नूतन बाट बना।

धारी अनेक
दुर्ग सेहो अनेक
शक्ति ‍-सँ-शक्तिे‍
सटि‍-सटि‍ बनैछ
बटोही पार ओर।

सुख-संतोष
सरोवर बनैए
रूप करम
सदि‍ लीला करैए
बनल सत् कर्म।

ठूठ अपन
करनीसँ भेल छै
बाँस सभटा
उजरा बगुलाक
फेरमे पड़ि‍-पड़ि‍।

दूध अमृत
आषब-अरि‍ष्टि भऽ
जीवन दान
करैत एलै गाए
पशु बनि‍ जि‍बैए।


पौरुष पाबि‍
रोकए नै ककरो
बाट-घाट ओ
सि‍रजि‍-सि‍रजि‍ कऽ
नि‍त नूतन घाट।


एक वनमे
लतड़ि‍ पसरि‍ कऽ
पसरि‍ वि‍श्व
काटि‍-छाँटि‍ कऽ
बाट बाटले झगड़ैए।

कतेक अछि‍
कल्प ना यर्थाथमे
अन्त र बूझि‍
लगा रहल नहा
घामसँ स्वहयं हम।


अखन अहाँ
रंग-रंगक फूल
सदृश बनि‍
बनल फूले जकाँ
आप्तफ-व्या‍प्त  छी अहाँ।


हमर प्राण
थर-थर कपैए
बनि‍ लहाश
चुपचाप ठाढ़ भऽ
देखि‍ रहल अछि‍।

बबाजी बीच
पसरल जहि‍ना
सेवा धरम
समाज सेवी बीच
गरीब-गरीब छै।

पाबि‍ सकलौं
जि‍नगी अकारथ
बनि‍-बनि‍ कऽ
बाट धेलौं अपने
भीतर घात भेल।

जरना बनि‍
सील बनल छैक
रश्मि‍-सँ-रश्मि‍
हँसि‍- हँसि‍ जरै छै
मुर्दो बनि‍ हँसै छै।

हमरा पाछू
धेने रहैत अछि‍
हरेक छन
उठैत-बैसैत ओ
कखनो नै छौड़ैए।    



मेघ लटकै
प्रकाश छिरियाइ
प्रकृति नाचै।

मेघ बादल
दुनू चलै साधल
पहाड़ी दि‍स।

इन्द्र  कमल
होइत अछि‍ फूल
उज्ज र धप।

थल कमल
गाएक घंटी सन
होइत अछि।‍

सोणि‍त दान
महादान होइछ
जीवन लेल।


हरि‍अर आ
पीअर मि‍लि‍ दुनू
काँच-पाकल

कनैल फूल
पत्तामे नुकाएल
रहैत अछि।‍

एतुक्का गि‍द्ध
पड़ाइन करैए
मनुक्खेक जकाँ।


अंडी छाहरि‍
दैत अछि‍ राहति‍
कोशि‍कन्हा।मे।

उज्ज र मेघ
टि‍करी बनि‍-बनि‍
जेना चलैए।


केराक वीर
अपन वीरताकेँ
घोकचौअने।

मोर-मोरनी
वादलक सह पाबि‍
नाचै लगैत

गुफाक गुंज
श्वेत वादलक सह
अनुगूंजि‍त।

रँगल कोसा
लेने अबैत संग
केरा घौड़केँ।

चम्पाघ-चमेली
रोहनि‍क नक्षत्र
कड़क रौद।


मरूआ बीआ
रोहनि‍ आम दुनू
उमझै पकै।

ति‍क्खौर रौद
बालुक जहाजकेँ
तेजी अनैत।

सुरेब सि‍सो
ऋृगवैदि‍क सन
कठमकठ।

पहार पार
उत्तरवारि‍ कात
कि‍छु अवश्यक।

पाथर उगै।
पानि‍ सटकै छैक
मेघ लटकै।


गोल-मोल छै
धप्-धप् चान छै
दाग लागल।

सुग्गाग बैसल
सोचि‍ रहल अछि‍
पाछू लोक ले।

सुग्गाो बैसल
छै चि‍न्ताैमे डूबल
दीन-हीन ले।


परहेज आ
संयमसँ भेटैछ
पैघ जि‍नगी।


झुठ बाजब
पाप होइत अछि‍
स्व यं छोड़ि‍ नै।


एकटा चान
सातटा देखाइत
मोति‍याबि‍न।

कनैलक बीआ
घुच्चीब बना खेलैत
बच्चाी-बेदरू।

कि‍ष्कानर मास
लताम लुबधल
पि‍रे-पीअर।

माछक चटनी
जोड़ी मरूआ रोटी
चहटगर।


दुर्गा पूजाक
मतलब होइछ
शक्तिह‍पूजा।


अन्हाहर गुप्पे
हाथो-हाथ ने सुझै
हवा बहैत।

राजनेतासँ
नीक मानल ऐछ
काजनेता।

गेंदा पातक
घा हाथ-पएरक
रससँ छुटै।

खेती-वाड़ीकेँ
कि‍सान लचारीकेँ
कोन महत।

सबल साँच
दुर्बल भेल झुठ
दुनूमे फाँट।


खेरही दालि‍
नेबो रस मि‍लल
हृदै खि‍लल।

चौमास-बाड़ी
दालि‍ खेसारी
गाए-बरदले।

पीपर पात
बि‍हरन आप्तर छै
तैयो डोलैत।

शान्तड हवासँ
अन्हतर-बिहाड़िक
आगम होइ।

हरि‍अरसँ
तेज भऽ जाइत छै
आँखि‍क ज्योँति।



वनमे बास
वनफूलक आस
अमलतास।


ऊँच-नीचक
भेद झपने जाइ
हरि‍अरी यौ।


नि‍चुका सभ
चौरस अ-हटल
ऊँचका हटि।‍


प्रकृति‍ शक्तिो‍
लाल रंग पाबि कऽ
हँसैत अबै।


प्रकृति‍ हँसै‍
लाल रंग पाबि
सुधार लेल।


बीचक मेधा
हरि‍अर उज्जसर
दूरी व्या।प्तज छै।


सघन डारि‍
एक्को रत्ती नै बैर
नि‍च्चा-ऊपर।

नि‍च्चा-ऊपर
समतल सघन
देखू एतए।



कोनो नै आश
छोड़ि‍ पोरोक साग
सरदि‍याह।


केरा गाछमे
घौरक संग कोसा
खुश छी पूरा।


केरा गाछमे
घौरक संग कोसा
लटकल छै।


भारी रहि‍तो
बीर खा-खा थि‍कहुँ
अँखि‍याएल।


नीचाँ ऊपर
सक्षम छै सभठॉ
चाही टूस्सेठटा।


राति दि‍नमे
कोनो नै अछि‍ हीन
नाप-जोखमे।

गुण-दोषसँ
एक-दोसर बीच
अबैए फाँट।




दि‍न प्रतीक
बनि‍ ज्ञानक अछि‍
भेल महान।


राति होइए‍
अज्ञानक प्रतीक
लोक कहैए।


दि‍नकेँ दुन्नीग
राति‍ चौगुन्नीद सेहो
लोके कहैए।


नि‍र्णए लि‍अ
नीक संग अधला
होइते अछि।

गर्मी मासमे
कि‍सानक आशमे
ठढ़ी अबैए।


आश धड़ैए
बाट पतझारक
सभक सोझा।

उपाए बि‍नु
सहसहबइए
मनुख जन्मक।

पूर्ति प्रकृत
करए चाहैत छै
मनुख तन।

मनक बाढ़ि‍
आबि‍-आबि‍ तोड़ैए
तन-सँ-तन।

आड़ि‍-धूड़केँ
टुटलाहा मुँहकेँ
कि‍यो ने जौड़ै।


काति‍क मास
डंका बजा कऽ
तोड़ि‍ दइए।


भरि‍ दि‍न ओ
झाँट-ब‍र्खा सजै़ए
रोपनि‍ लेल।

अगहनमे‍
कटनी करैए ओ
धान खेतमे।

ओसा बना कऽ
मोट-महीं बेरा कऽ
उसनै कुटै।

खांहि‍स भरे
सोचि‍-सोचि‍ कऽ डरे‍
महिंका बेचै।


छने-छनाक
उड़ि‍ जाए दनाक
भेल नि‍हत्था्।

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