गुरुवार, 21 जून 2012


हाइकु 

बेघर बच्चा
ढेरिऔलक बालु
बनेतै घर ।

सिन्धु कछेर
उधियाइत पानि
दहेलै घर ।

गाछक तर
सिखैछ लिखनाइ
बच्चा 'घर' !

कहाँ छै ठर
बुढ-पुरान केर
अपने घर ।

अँगना घर
बनल मरचर
घरहि-घर ।

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