सोमवार, 13 अगस्त 2012

महंगाई आ भर्स्टाचार

ई महंगाई
अछि बड़ विशाल
तोड़त ड़ार

भुक्खे मरब
कोना हेतै गुज़ारा
अखाड़ मास

सभटा नेता
आर इ सरकार
दुनु टा भ्रष्ट

कोन उपाय
करब सरकार
पेटक लेल

वोट दए क
बनाबू सरकार
ईमानदार

तखने अछि
ज़िंदा रहय केर
नीक उपाय

आयल नेता
नीक ईमानदार
भरल पेट



शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हाइकू/टनका- उमेश मण्डल


हाइकू/टनका- उमेश मण्डल

आप्तू-व्या प्तर छै
भुखमरी आइयो
अनठबै छी
देखि‍ देखि‍ हमहीं
आँखि‍ अँखि‍अबै छी।


समस्याछ आप्ति
सोलहनी सजल
साहि‍त्यआकार
लेखे पुरान छै आप्तर
केना एतै यथार्थ।




तोरा पएरे
हम नै जेबो आब
कि‍एक तँ तूँ
भेलेँ लापड़बाह
चऽल कोढ़ि‍क चालि।

अहाँक आँखि‍
चपेटि लैत अछि‍
हमर हृदै
औनाए लगैत छी
चारू भुवन हम।



दीन-हीनले
नाटक करैत छी
दया देखा कऽ
दया-सँ-माया बीच
हमहीं फॅसल छी।



राति‍क अंत
उदयसँ होइए
दीनक अंत
अस्त  होइए
दुनूकेँ भेद कऽ कऽ
अजस धड़ैत छी।

पग पगहा
बाट-बटोही घाट
ढाठ बनैए
कर्म आ अकर्म नै
जे बूझि‍ चलैए।





जीवनक रस
कालचक्र ओझल
केने आएल
दि‍न-राति‍क भेद
तखन तँ हएत।



हरि‍अर लत्ती
आँखि‍ मारि‍-मारि‍ कऽ
कहै छै आबो
फल वि‍हुन हम
रहल रहब आबो।

सातम तल
धरती सजल छै
पातालपर
अकासो सात खण्ड
मर्त देव लोक छै।



बाट-बटोही
बाटे-बाट बौआइ छै
हँसि‍-खेल कऽ
सभ साँझू पहर
ठेहि‍याए चाहैए।


बीआ अकुर
बढ़ैत बनल गाछ
पौरुष पाबि‍
बनाओल जि‍नगी
सन्हि ‍या धरतीमे
बनौलक जि‍नगी।

देखि‍ तुलसी
अनन्त  सरोवर
उमरि‍ झील
हुलसि‍-हुलसि‍ कऽ
नाचि‍-नाचि‍ गबैए।



अश्रु सजि‍ कऽ
अनन्त  कमल बीच
प्रेम पसारि‍
अमृत सजबैए
सेज-सजा कऽ छाती।



बर्खाक बून
धारसँ मि‍लि‍ धारा
धर-धरा कऽ
अपना गति‍ये ओ
चलए चाहैत छै।

अकास बीच
स्वसर्ग-नरकक छै
संसार आप्ति
रचि‍ बसि‍ संसार
भागक बनल आश।



तामि‍ कोड़ि‍ कऽ
परती-पराँत बीच
भोगक चास
बनि‍-बनि‍ भेल छै
ऊँचका डीह-बास।



साटि‍-साटि‍ कऽ
सहे-सहे बनल
हुच्चीा सदृश
एका-एकी मेटए
हँसैत खनदान।

सि‍रजि‍ रूप
शि‍खर सौन्द‍र्यक
देखि‍ बि‍हि‍या
आनि‍ जगबैए ओ
अपन सजबैए।



प्रेमीक रूप
जमुनामे सौरभ
पाबि‍ प्रकाश
चढ़ि‍-चढ़ि‍ कऽ आबि‍
सभकेँ ओ देखैए।



कहू केहेन
मि‍थि‍ला जेहेन छै
दसो दि‍शाक
धरती नभ बीच
किसान-बोनि‍हार?

रंग-बि‍रंगी
मने हेराएल छै
दृष्टिर‍ धरती
आत्मिि‍क-भौति‍क ओ
दैवी रूप बनल।



आगत देखि‍
तीनूक तकरार
तत्वक कहैत
चि‍क्कन चालि‍ चलैत
परखि-परखि जीबू।



हारि‍-जीतक
अजीब ऐ सृष्टिर‍क
मन ने माने
जोग-भोग सि‍रजि‍
वि‍परीत चलए।

सोचि‍-वि‍चारि‍
नापि‍ चलि‍ बाटकेँ
जोति‍ते चास
चलि‍-ससरि‍ चलू
लाट बना संगमे।




बिर्रोमे उड़ि‍
दोगे-सान्हि़‍ये पड़ा
मातृभूमि‍सँ
पुरुषत्व‍ गमा कऽ
बौआ रहल अछि।



फूल जहि‍ना
सभतरि‍ फूला कऽ
गंध बँटैले
संग कए कऽ बसात
नभ बीच चलैत।

नदी गोंगि‍ऐ
कमल केर फूल
रँग बदलै
रौद लगलापर
उज्जलरो भऽ जाइत।



बोनि‍हारि‍न
केर सोणि‍तक छै
सड़कपर
देल अलकतड़ा
नै छै केकरो पता।



फूस घरक
छप्पघड़पर ठाठ
तीन आसक
खढ़, खपड़ा, चार
एसबेस्टेस आब।

चाकक एक
हाथ परहक दू
माटि‍ सानि‍ कऽ
खपड़ा बनैत छै
थोपुआ आ नरि‍या।



दुनू मि‍ला कऽ
ठाठपर पड़ै छै
रौद बर्खासँ
रच्छार करै छै घर
तैमे लोक रहैए।


रौद वसात
शीतलहरी धुनि‍
गरमी जाड़
वसंत-सँ-वहार
मि‍थि‍लाक इयार।


जाड़ मासमे
शीतलहरी धुनि‍
अबै-जाइए
कनकन्नी होइ छै
थरथरी धड़ै छै।



हरि‍अरका
डग-डगीसँ भरि‍
जाइत अछि।‍
करगर रौदसँ
रोहनि‍ सभ साल।




तोरा पएरे
हम नै जेबो आब
कि‍एक तँ तूँ
भेलेँ लापरवाह
चऽल कोढ़ि‍क चालि।


अहाँक आँखि‍
चपेट लैत अछि‍
हमर हृदै
औनाए लगैत छी
चारू भूवन हम।



बैंग बजैए
टर्र-टर्र रटैत
घोघ फल्का कऽ
उछलि‍-उछलि‍ कऽ
तड़ैप-तड़ैप कऽ।



अगम पानि‍
जीवक जि‍जीवि‍षा
उहापोहसँ
बनल स्थि-‍ति‍ अछि‍
अप्पसन आन भेल।


कदम फूल
सभरँगा रँगसँ
शोभि‍त छै
झड़ैत रहैत छै
समए समैपर।



दि‍न-राति‍क
बीच संसार अछि‍
वि‍चार बीच
मेघौन आप्तक छैक
उग्रास व्याऽप्ता छैक।



खने मेघौन
खने उग्रास भऽ भऽ
चलैत-चलि‍
कारी घटा बनि‍ कऽ
बुन-बुन सागर।


अकास मार्ग
ठनका आ पाथर
नचि‍-नि‍च्चाँऽ
कि‍नछड़ि‍ बि‍रजि‍
परि‍चए दइए।


चढ़ि‍ अखार
दि‍न-राति‍ सुगंध
महमहबए
पड़ि‍ते फुहारसँ
चारूकात अम्बाुर।


भीर-कुभीर
छि‍ड़ि‍यबए क्षीर
सदति‍ संग
ससरए समीर
राग-वि‍रागक।


वि‍शाल क्षेत्र
रंग-रंगक फूल
फूलाएल छै
आँखि‍ बि‍नु आन्ह र
देखि‍नि‍हार लोक।


गाछीक बीच
हजारो वृक्ष आप्तह
सबुर गाछ
मेवा फड़ैत छैक
नजरि‍क कमाल।


खेल खेलक
कालक बनाओल
खेले वि‍चि‍त्र
दि‍न-राति‍ चलि‍ कऽ
मति‍ये बदलैए।


धरती संगी
संग मि‍लि‍ हँसए
मातृभूमि‍केँ
सेवा कऽ जगबैए
जगेनि‍हार मात्र।


आगि‍ पजरि‍
तड़पि‍ छटपटा
धरती फाड़ि‍
ज्यो ति‍ पबैले जीव
नि‍कलए लगैत।


गाछ-सँ-फूल
सि‍रजि‍ सजबैए
शक्तिफ‍क संग
जि‍नगीक परीक्षा
साधक सजबैए।


माघ मासक
राति सतपहरा
दर्शन पाबि‍
सहन सि‍रजि‍ कऽ
राति‍-दि‍न हँसए।


अद्भुत खेल
वि‍धाता बनाओल
आँखि‍-मि‍चौनी
राति‍ दि‍न बदलि
दि‍न राति‍ बनैए।


वसन्तत राग
नव सूत जेबर
भरैत कहए
सदि‍खन जि‍नगी
परखति‍ चलए।


समए संग
गति‍-मति‍ चलि‍ते
ग्रह-नक्षत्र
दोहरी बाट बनि‍
अन्हा र इजोतक।

तमाशा बनि‍
कंगाल बनल छै
सपना बीच
सपनाए रहल
दि‍शाहीन देशक।

खुशी खुशीक
दुनि‍याँ बनल छै
धीया-पुताक
देखि‍-देखि‍ नचैत
कथनी बीच भेद।

लुत्ती छि‍टकि‍
ठौहरीक धधड़ा
करि‍या धुआँ
जीव-जन्तुक पड़ाइ
धीरजसँ सहैत।

शीतल नोर
झहड़ि‍-झहड़ि‍ कऽ
कहैए सुना
मनक ताप बीच
पटबैत रहबै।

रग्गतरक छै
पसरल वनमे
धधड़ा-धुआँ
अश्रु करूआइते
पड़ाइ छै जीव।

वेदनक वाण
योग-ि‍वयोग बीच
लहलहाइत
हफैत हवा बीच
नयन नीर ज्यो ति‍।


कोमल कली
लहलहाइए तब
शीतल पाबि‍
श्रृंगार सजबैत
जुआनी पबि‍ते ओ।

गुण धरम
देखि‍ पड़ैए तब
मधुर प्रेमी
कर्मक संग भाव
अनैए जब तब।

हँसि‍ गाबि‍ कऽ
जगत जननीकेँ
सेवा करैए
राति‍-दि‍न आदि‍सँ
मि‍थि‍लाक वीर।

वंशक वृक्ष
लतरि‍-पसरि‍ कऽ
वि‍शाल बनि‍
कोसी-कमला बीच
बलि‍दान करैए।

बाते-बातमे
झगड़ैए तानि‍ कऽ
नइ रहैछ
कल्याैणक माइन
रावणक सखाकेँ।


सृजए नि‍त
सौहार्दक बाट ओ
जननी प्रेमी
बूझि‍-बूझि‍ मर्म ओ
नूतन घाट दुर्गक।

लइते जन्मद
धरतीपर आबि‍
अकास बीच
चक्रक चक्का जानि‍
नूतन बाट बना।

धारी अनेक
दुर्ग सेहो अनेक
शक्ति ‍-सँ-शक्तिे‍
सटि‍-सटि‍ बनैछ
बटोही पार ओर।

सुख-संतोष
सरोवर बनैए
रूप करम
सदि‍ लीला करैए
बनल सत् कर्म।

ठूठ अपन
करनीसँ भेल छै
बाँस सभटा
उजरा बगुलाक
फेरमे पड़ि‍-पड़ि‍।

दूध अमृत
आषब-अरि‍ष्टि भऽ
जीवन दान
करैत एलै गाए
पशु बनि‍ जि‍बैए।


पौरुष पाबि‍
रोकए नै ककरो
बाट-घाट ओ
सि‍रजि‍-सि‍रजि‍ कऽ
नि‍त नूतन घाट।


एक वनमे
लतड़ि‍ पसरि‍ कऽ
पसरि‍ वि‍श्व
काटि‍-छाँटि‍ कऽ
बाट बाटले झगड़ैए।

कतेक अछि‍
कल्प ना यर्थाथमे
अन्त र बूझि‍
लगा रहल नहा
घामसँ स्वहयं हम।


अखन अहाँ
रंग-रंगक फूल
सदृश बनि‍
बनल फूले जकाँ
आप्तफ-व्या‍प्त  छी अहाँ।


हमर प्राण
थर-थर कपैए
बनि‍ लहाश
चुपचाप ठाढ़ भऽ
देखि‍ रहल अछि‍।

बबाजी बीच
पसरल जहि‍ना
सेवा धरम
समाज सेवी बीच
गरीब-गरीब छै।

पाबि‍ सकलौं
जि‍नगी अकारथ
बनि‍-बनि‍ कऽ
बाट धेलौं अपने
भीतर घात भेल।

जरना बनि‍
सील बनल छैक
रश्मि‍-सँ-रश्मि‍
हँसि‍- हँसि‍ जरै छै
मुर्दो बनि‍ हँसै छै।

हमरा पाछू
धेने रहैत अछि‍
हरेक छन
उठैत-बैसैत ओ
कखनो नै छौड़ैए।    



मेघ लटकै
प्रकाश छिरियाइ
प्रकृति नाचै।

मेघ बादल
दुनू चलै साधल
पहाड़ी दि‍स।

इन्द्र  कमल
होइत अछि‍ फूल
उज्ज र धप।

थल कमल
गाएक घंटी सन
होइत अछि।‍

सोणि‍त दान
महादान होइछ
जीवन लेल।


हरि‍अर आ
पीअर मि‍लि‍ दुनू
काँच-पाकल

कनैल फूल
पत्तामे नुकाएल
रहैत अछि।‍

एतुक्का गि‍द्ध
पड़ाइन करैए
मनुक्खेक जकाँ।


अंडी छाहरि‍
दैत अछि‍ राहति‍
कोशि‍कन्हा।मे।

उज्ज र मेघ
टि‍करी बनि‍-बनि‍
जेना चलैए।


केराक वीर
अपन वीरताकेँ
घोकचौअने।

मोर-मोरनी
वादलक सह पाबि‍
नाचै लगैत

गुफाक गुंज
श्वेत वादलक सह
अनुगूंजि‍त।

रँगल कोसा
लेने अबैत संग
केरा घौड़केँ।

चम्पाघ-चमेली
रोहनि‍क नक्षत्र
कड़क रौद।


मरूआ बीआ
रोहनि‍ आम दुनू
उमझै पकै।

ति‍क्खौर रौद
बालुक जहाजकेँ
तेजी अनैत।

सुरेब सि‍सो
ऋृगवैदि‍क सन
कठमकठ।

पहार पार
उत्तरवारि‍ कात
कि‍छु अवश्यक।

पाथर उगै।
पानि‍ सटकै छैक
मेघ लटकै।


गोल-मोल छै
धप्-धप् चान छै
दाग लागल।

सुग्गाग बैसल
सोचि‍ रहल अछि‍
पाछू लोक ले।

सुग्गाो बैसल
छै चि‍न्ताैमे डूबल
दीन-हीन ले।


परहेज आ
संयमसँ भेटैछ
पैघ जि‍नगी।


झुठ बाजब
पाप होइत अछि‍
स्व यं छोड़ि‍ नै।


एकटा चान
सातटा देखाइत
मोति‍याबि‍न।

कनैलक बीआ
घुच्चीब बना खेलैत
बच्चाी-बेदरू।

कि‍ष्कानर मास
लताम लुबधल
पि‍रे-पीअर।

माछक चटनी
जोड़ी मरूआ रोटी
चहटगर।


दुर्गा पूजाक
मतलब होइछ
शक्तिह‍पूजा।


अन्हाहर गुप्पे
हाथो-हाथ ने सुझै
हवा बहैत।

राजनेतासँ
नीक मानल ऐछ
काजनेता।

गेंदा पातक
घा हाथ-पएरक
रससँ छुटै।

खेती-वाड़ीकेँ
कि‍सान लचारीकेँ
कोन महत।

सबल साँच
दुर्बल भेल झुठ
दुनूमे फाँट।


खेरही दालि‍
नेबो रस मि‍लल
हृदै खि‍लल।

चौमास-बाड़ी
दालि‍ खेसारी
गाए-बरदले।

पीपर पात
बि‍हरन आप्तर छै
तैयो डोलैत।

शान्तड हवासँ
अन्हतर-बिहाड़िक
आगम होइ।

हरि‍अरसँ
तेज भऽ जाइत छै
आँखि‍क ज्योँति।



वनमे बास
वनफूलक आस
अमलतास।


ऊँच-नीचक
भेद झपने जाइ
हरि‍अरी यौ।


नि‍चुका सभ
चौरस अ-हटल
ऊँचका हटि।‍


प्रकृति‍ शक्तिो‍
लाल रंग पाबि कऽ
हँसैत अबै।


प्रकृति‍ हँसै‍
लाल रंग पाबि
सुधार लेल।


बीचक मेधा
हरि‍अर उज्जसर
दूरी व्या।प्तज छै।


सघन डारि‍
एक्को रत्ती नै बैर
नि‍च्चा-ऊपर।

नि‍च्चा-ऊपर
समतल सघन
देखू एतए।



कोनो नै आश
छोड़ि‍ पोरोक साग
सरदि‍याह।


केरा गाछमे
घौरक संग कोसा
खुश छी पूरा।


केरा गाछमे
घौरक संग कोसा
लटकल छै।


भारी रहि‍तो
बीर खा-खा थि‍कहुँ
अँखि‍याएल।


नीचाँ ऊपर
सक्षम छै सभठॉ
चाही टूस्सेठटा।


राति दि‍नमे
कोनो नै अछि‍ हीन
नाप-जोखमे।

गुण-दोषसँ
एक-दोसर बीच
अबैए फाँट।




दि‍न प्रतीक
बनि‍ ज्ञानक अछि‍
भेल महान।


राति होइए‍
अज्ञानक प्रतीक
लोक कहैए।


दि‍नकेँ दुन्नीग
राति‍ चौगुन्नीद सेहो
लोके कहैए।


नि‍र्णए लि‍अ
नीक संग अधला
होइते अछि।

गर्मी मासमे
कि‍सानक आशमे
ठढ़ी अबैए।


आश धड़ैए
बाट पतझारक
सभक सोझा।

उपाए बि‍नु
सहसहबइए
मनुख जन्मक।

पूर्ति प्रकृत
करए चाहैत छै
मनुख तन।

मनक बाढ़ि‍
आबि‍-आबि‍ तोड़ैए
तन-सँ-तन।

आड़ि‍-धूड़केँ
टुटलाहा मुँहकेँ
कि‍यो ने जौड़ै।


काति‍क मास
डंका बजा कऽ
तोड़ि‍ दइए।


भरि‍ दि‍न ओ
झाँट-ब‍र्खा सजै़ए
रोपनि‍ लेल।

अगहनमे‍
कटनी करैए ओ
धान खेतमे।

ओसा बना कऽ
मोट-महीं बेरा कऽ
उसनै कुटै।

खांहि‍स भरे
सोचि‍-सोचि‍ कऽ डरे‍
महिंका बेचै।


छने-छनाक
उड़ि‍ जाए दनाक
भेल नि‍हत्था्।

हाइकू/ शेर्न्यू/ टनका - रामवि‍लास साहु


हाइकू/ शेर्न्यू/ टनका - - रामवि‍लास साहु


भरल नदी
नाह खेबै खेबैया
पानि‍ बहैत
बाढ़ि‍ पानि‍ भरल
कोना प्राण बचत।


मोर नाचैत
मोरनी संग-संग
बादल बून्न
प्रेमक दृश्य- दैत
मन हर्षित करै।


कारी बादल
बरखा बरसैत
बून्न गि‍रैत
बि‍जली चमकैत
राति‍-दि‍न झरैत।


आम रंगीला
स्वांद छै अलवेला
पीला रसीला
लालौन सि‍नुरि‍या
सभकेँ ललचाबै।


लाल गुलाब
संगे काँट लागल
रूप गंधसँ
सभक दि‍ल बसै
भौंराकेँ ललचाबै।



पछताइ छी
पथपर चलैत
मौतक संग
नरको नहि‍ बास
कोना करब आस।

टुटल खाट
सुतल छी चैनसँ
पहरा नहि‍
करबट फेड़ैत
पेटकुनि‍या दैत।

पानि‍क बुन्न
मोती सन चमकै
धरतीपर
माइटसँ ि‍मलैत
नदी रूप बनैत।

चि‍ड़ै चहकै
चुनमुन फुदकै
पंख खोइल
नव पथ बनाबै
आजादीसँ भ्रमऐ।

गंगा भरल
अमृत सन जल
जि‍नगी दैत
अपने सेवककेँ
गोदमे बसाबैत।

बेटा-बेटीमे
नहि‍ कोनो अंतर
परेशानी कि‍
नहि‍ लेब जंतर
कि‍ये हएत अंतर


दूजक चाँद
घीरे चढ़े अकास
ओहि‍ना सि‍खू
पुर्णिमाक चाँदसँ
बेसी करू वि‍कास।


खेतक काज
राखै जगक मान
नै अपमान
खूब कमाउ नाम
धान-पान-सम्मान।

गायक दूध
दही-गोत-गोबर
घी छै अमृत
मि‍लि‍ते पंचामृत
जे पि‍बै बनै देव।

चैतक रौद
तपाबै माटि‍-पानि‍
पछि‍या हवा
पकाबै चना-गहुम
बहारै धूर-कण।

फूलक डाढ़ि‍
भौरा चढ़ै दू-चारि‍
गमकै बाग
वसन्ती हवा बहै
कोइली गाबै गीत।


कारी काजर
आँखि‍ देत सुखाय
कारी बादल
बरखासँ डुबाय

मुखरा देत बि‍गाड़ि‍।


सत्या वचन
अपन हुऐ हानि
मि‍ले सम्मा न
नहि‍ छोड़ब बानि‍
दोसरक कल्यािण।


झाड़ू बहारै
कूड़ा-कचड़ा धूर
सत्या भगाबै
मन बसल मैल
पाप नै धुले पानि‍।


धर्मक शोर
पताल पसरल
वीरक यश
तीनू लोक पहुँचै
अधर्मसँ अहि‍त।‍


चौबीस घंटा
दि‍न राति‍ बनैत
सात दि‍नक
सप्तािह बनैत छै
बारह मास वर्ष।

फूलक बाग
सि‍ंचैत अछि‍ माली
इन्द्रा सि‍ंचैत
धरती उपवन
अन्न उपजै खेत।


टुटल दि‍ल
प्रेमसँ जुटैत छै
सूखल नदी
जलसँ जि‍वैत छै
क्षने आगू बढ़ै छै।


चहकै चि‍ड़ै
वन-उपवनमे
गमकै फूल
वागमे झुलि‍-झुलि‍
देखै चान हँसैत।


नेना-भुटका
खेलै गुड़ि‍या खेल
पानि‍सँ मेल
जाि‍त भेद भुलि‍
पढ़ै एकता पाठ।





पान मखान
ि‍मथि‍लाक सम्माचन
धानक खान
जनकपुर धाम
ि‍मथि‍लाकेँ प्रणाम।

पढ़ैत सुग्गा
कहैत राम नाम
ि‍पंजड़ा बन्दु
रहैत छै गुलाम
अछि‍ संत समान।

सँाच बजैत
जग मारल जाय
झूठ बजै तँ
जगत पति‍याय
नै छोरू सँाच बानि‍।

नीमक गाछी
सुतल रही खाट
सपनैति‍ छी
चलि‍तो पछताति‍
नदी तटक बाट।

दु:खक बात
नै कहि‍यो ककरो
सुनि‍ हँसत
हानि‍ करत मान
नै ि‍मलत सम्माान।

जीवन दैत
जल जीव जन्तु केँ
शीतल चँाद
चँादनी िछटकैत
शोभा छै धरतीकेँ।

आमक डारि‍
झूला झूलैत राधा
कृष्णझ पुकारै
संगे-संग झूलब
वृन्दाूवनक झूला।

पानक पात
मखानक प्रसाद
स्वनर्गक बास
नदी तटक चास
नै होएत वि‍श्वास।

माइक गोद
धरतीकेँ बि‍छौना
फूलक सेज
सुख पाबै बेजोर
नै ि‍मलै परलोक।

बँासक वंशी
स्वसर बजै मधुर
माया पसारै
स्वार छै अनमोल
सुनै सभ वि‍भोर।

कारी काजर
मुखड़ा ि‍बगारैत
कारी कोइली
मधुर गीत गबै
सभकेँ ललचाबै।

चँादनी राति‍
कहै मनक बात
प्यामसल प्रेमी
प्यामस बुझाबै राति‍
दि‍लसँ करै बात।

देव धर्मसँ
ऊपर माए-बाप
तीर्थक खान
धरती माता अछि‍
हि‍न्दु‍स्तानन महान्।

मान घटै जँ
ि‍नत्यन जाय सासुर
मान बढ़ै जँ
करै अति‍थि‍ सेवा
सेवासँ ि‍मलै मेबा।

कालक मुँह
खुलल छै ि‍वशाल
क्रमश: सभ
समए बचै नहि‍
कोय एहि‍ चक्रसँ।

चमेली फूल
गमकै ि‍दन-राति‍
गजरा बनि‍
देवौकेँ नहि‍ चढ़ै
नारी सजाबै केश।

कमल फूल
ि‍बराजै लक्ष्मीकजी
सुख शान्तिा‍ दै
अन्नश, धनसँ भरै
सभक छै कल्यानण।

सावन मास
जलक बुन्न् पड़ै
आसमानसँ
बेंगक बाजा बजै
खन्ता  डबरा भरै।

पानि‍क बुनन
मोतीसँ महग छै
मोतीसँ नहि‍
ि‍मटै भूखक रोग
पानि‍ ि‍जनगी दैत।

मैथि‍ली भाषा
मौध सन मधुर
जे नहि‍ पढ़ै
वो बाजि‍तौ लजाय
पावै पढ़ि‍ते मान।

मौध मखान
रेहु माछक खान
पानसँ मान
मौर सँ बढ़ै शान
ि‍मथि‍लाकेँ ि‍नशान

आमक फल
मधुर रसदार
फलक राजा
सभकेँ मन भावै
सभकेँ ललचाबै।

सावन मास
रि‍मझि‍म फुहार
प्रेम बढ़ाबै
प्रेमीकेँ ललचाबै
गोरीकेँ तरसाबै।


मोनक बात
की कहब सजनी
समए नहि‍
की भेजब सनेस
दि‍ल दर्दक क्ले‍श।


दि‍लक रोग
नहि‍ कोनो इलाज
प्रेमक भूख
नहि‍ ि‍मटै धनसँ
नहि‍ कोनो दवासँ।


चंचल मन
ि‍चत्त  घबराइत
मन डोलैत
नयन सुखदाय
प्रेमी कहै लजाय।


सोना कंगना
पैर पयजनि‍यँा
नाचै अंगना
घुरि‍ घुरि‍ ताकैत
हमर सजनि‍यँा।


फूलक डारि‍
झुलि‍ सनेश दैत
देशवासीकेँ
सदा प्रसन्नल रहुँ
देशक सेवा करू।


देशक सेवा
माइक सेवा करू
ि‍जनगी भरि‍
धर्मक पालन छै
गरीबक कल्याीण।


सुइत उठि‍
माए-बाप गुरूकेँ
छूउ चरण
ि‍नत्य  बन्दँन करू
कृपा करत देव।


पढ़ि‍ ि‍लखि‍ कऽ
बनु ज्ञानीसँ दानी
करू देशक
ि‍वकास कल्याणणक
रखू उँचा ि‍तरंगा।


सभ अपन
पराया नहि‍ कोय
सूरज चँाद
सभकेँ समझैत
एक समान हि‍त।


राजा दुखि‍त
प्रजा सभ दुखि‍त
जोि‍गक दुख
दुखि‍या सँ छै बेसी
संसार अछि‍ दु:खी।


सेवा करैत
पथ पर चलैत
आगू बढ़ैत
झरना सन आगू
संघर्ष सँ बढ़ैते।


खूनक दाग
ि‍छपाय नहि‍ पावै
पापक भार
धरती नै उठाबै
सत्य  करै से होय।


प्रात:क जल
पीबैत रहु ि‍नत्य।
टटका फल
खाउ जीबैत धरि‍
बनल रहु स्वबस्थि।


रथक चक्का्
उलटि‍ चलै बाट
चाक चलै छै
ठामे ठाम नचैत
दुनु करै दू काम।

बच्चाक बेदरू
खेलैत संगे खेल
कखनु झगड़ा
कखनु करै मेल
पढ़ै छै पाठ एक।


ि‍खलैत फूल
देखैत भौंरा नाचै
रस पि‍बैत
राति‍ बि‍तबै संगै
प्रेमक बात करै।


दि‍लक बात
की कहब सजनी
प्रेमक बँाध
सभसँ मजबूत
तोड़लौं सँ नै टुटै।


खूनक दाग
सभसँ अछि‍ पक्काै
मि‍टैत नहि‍
कारी दागसँ भारी
बड़ पैघ बीमारी।


सच्चाै इंसान
ज्ञान धर्म ईमान
उच्चन ि‍वचारि‍
मानवक श्रृंगार
कार्य करै महान्।


सूर्य रौंद सँ
धरती तैप तैप
शुद्ध होयत
सोना तपै आगि‍सँ
धर्म सँ तपै लोक।


मोछक मान
राखै छै घरवाली
सेवक करै
घरक रखवाली
गाय छै हि‍तकारी।


दुर्जन साधु
नौकर बेईमान
कपटी ि‍मत्र
ई तीनु छी शैतान
क्षणमे लेत प्राण।


खाना खजाना
जनाना पखाना केँ
पर्दामे राखू
जौं राखक बाहर
ि‍बख बाि‍न जाएत।


प्रीत नै जानै
ओछी जाि‍त, नीन नै
टुटल खाट
प्या स नै धोबी घाट
सभ कहै छै बात।


बैल खींचैत
अछि‍ काठक गाड़ी
मनुख खींचै
छै दुि‍नयाक गाड़ी
की बनल लाचारी।



नीमक गाछ
करैत हवा साफ
दवा कऽ साथ।


गंगा कि‍नार
तीर्थक जेना धाम
पवि‍त्र स्ना न।


अति‍थि‍ सेवा
देव धर्मसँ पैघ
मधुर सेवा।


सभ दि‍न नै
होइत छै समान
राजा आ रंक।


अमृत पान
जि‍नगी दैत अछि‍
अमर दान।


मोरक पंख
चमकै चटकि‍ली
प्रेम जगाबै।


धनी बनब
सभकेँ इच्छा। अछि‍
दीन कि‍एक नै।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

गम्हारि- ऐ प्राकृतिक दृश्यपर एकटा गजल, शेर, रुबाइ, कता, हाइकू/ टंका/ शेनर्यू/ हैबून लिखू ।चित्र :सौजन्य LRBurdak & J.M.Garg, wikipedia.This work is licensed under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 License and This file is licensed under the Creative Commons Attribution-Share Alike 3.0 Unported license.)

    • Gajendra Thakur ऐ प्राकृतिक दृश्यपर एकटा गजल, शेर, रुबाइ, कता, हाइकू/ टंका/ शेनर्यू/ हैबून लिखू ।चित्र :सौजन्य LRBurdak & J.M.Garg, wikipedia.This work is licensed under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 License and This file is licensed under the Creative Commons Attribution-Share Alike 3.0 Unported license.)
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ई अछि खम्हारु। (ऐ प्राकृतिक दृश्यपर एकटा गजल, शेर, रुबाइ, कता, हाइकू/ टंका/ शेनर्यू/ हैबून लिखू ।चित्र :सौजन्य Tauʻolunga ,Obsidian Soul , wikipedia. These files are licensed under the Creative Commons Attribution-Share Alike 3.0 Unported license and the Creative Commons Attribution-Share Alike 3.0 Unported license. )