शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हाइकू/ शेर्न्यू/ टनका - रामवि‍लास साहु


हाइकू/ शेर्न्यू/ टनका - - रामवि‍लास साहु


भरल नदी
नाह खेबै खेबैया
पानि‍ बहैत
बाढ़ि‍ पानि‍ भरल
कोना प्राण बचत।


मोर नाचैत
मोरनी संग-संग
बादल बून्न
प्रेमक दृश्य- दैत
मन हर्षित करै।


कारी बादल
बरखा बरसैत
बून्न गि‍रैत
बि‍जली चमकैत
राति‍-दि‍न झरैत।


आम रंगीला
स्वांद छै अलवेला
पीला रसीला
लालौन सि‍नुरि‍या
सभकेँ ललचाबै।


लाल गुलाब
संगे काँट लागल
रूप गंधसँ
सभक दि‍ल बसै
भौंराकेँ ललचाबै।



पछताइ छी
पथपर चलैत
मौतक संग
नरको नहि‍ बास
कोना करब आस।

टुटल खाट
सुतल छी चैनसँ
पहरा नहि‍
करबट फेड़ैत
पेटकुनि‍या दैत।

पानि‍क बुन्न
मोती सन चमकै
धरतीपर
माइटसँ ि‍मलैत
नदी रूप बनैत।

चि‍ड़ै चहकै
चुनमुन फुदकै
पंख खोइल
नव पथ बनाबै
आजादीसँ भ्रमऐ।

गंगा भरल
अमृत सन जल
जि‍नगी दैत
अपने सेवककेँ
गोदमे बसाबैत।

बेटा-बेटीमे
नहि‍ कोनो अंतर
परेशानी कि‍
नहि‍ लेब जंतर
कि‍ये हएत अंतर


दूजक चाँद
घीरे चढ़े अकास
ओहि‍ना सि‍खू
पुर्णिमाक चाँदसँ
बेसी करू वि‍कास।


खेतक काज
राखै जगक मान
नै अपमान
खूब कमाउ नाम
धान-पान-सम्मान।

गायक दूध
दही-गोत-गोबर
घी छै अमृत
मि‍लि‍ते पंचामृत
जे पि‍बै बनै देव।

चैतक रौद
तपाबै माटि‍-पानि‍
पछि‍या हवा
पकाबै चना-गहुम
बहारै धूर-कण।

फूलक डाढ़ि‍
भौरा चढ़ै दू-चारि‍
गमकै बाग
वसन्ती हवा बहै
कोइली गाबै गीत।


कारी काजर
आँखि‍ देत सुखाय
कारी बादल
बरखासँ डुबाय

मुखरा देत बि‍गाड़ि‍।


सत्या वचन
अपन हुऐ हानि
मि‍ले सम्मा न
नहि‍ छोड़ब बानि‍
दोसरक कल्यािण।


झाड़ू बहारै
कूड़ा-कचड़ा धूर
सत्या भगाबै
मन बसल मैल
पाप नै धुले पानि‍।


धर्मक शोर
पताल पसरल
वीरक यश
तीनू लोक पहुँचै
अधर्मसँ अहि‍त।‍


चौबीस घंटा
दि‍न राति‍ बनैत
सात दि‍नक
सप्तािह बनैत छै
बारह मास वर्ष।

फूलक बाग
सि‍ंचैत अछि‍ माली
इन्द्रा सि‍ंचैत
धरती उपवन
अन्न उपजै खेत।


टुटल दि‍ल
प्रेमसँ जुटैत छै
सूखल नदी
जलसँ जि‍वैत छै
क्षने आगू बढ़ै छै।


चहकै चि‍ड़ै
वन-उपवनमे
गमकै फूल
वागमे झुलि‍-झुलि‍
देखै चान हँसैत।


नेना-भुटका
खेलै गुड़ि‍या खेल
पानि‍सँ मेल
जाि‍त भेद भुलि‍
पढ़ै एकता पाठ।





पान मखान
ि‍मथि‍लाक सम्माचन
धानक खान
जनकपुर धाम
ि‍मथि‍लाकेँ प्रणाम।

पढ़ैत सुग्गा
कहैत राम नाम
ि‍पंजड़ा बन्दु
रहैत छै गुलाम
अछि‍ संत समान।

सँाच बजैत
जग मारल जाय
झूठ बजै तँ
जगत पति‍याय
नै छोरू सँाच बानि‍।

नीमक गाछी
सुतल रही खाट
सपनैति‍ छी
चलि‍तो पछताति‍
नदी तटक बाट।

दु:खक बात
नै कहि‍यो ककरो
सुनि‍ हँसत
हानि‍ करत मान
नै ि‍मलत सम्माान।

जीवन दैत
जल जीव जन्तु केँ
शीतल चँाद
चँादनी िछटकैत
शोभा छै धरतीकेँ।

आमक डारि‍
झूला झूलैत राधा
कृष्णझ पुकारै
संगे-संग झूलब
वृन्दाूवनक झूला।

पानक पात
मखानक प्रसाद
स्वनर्गक बास
नदी तटक चास
नै होएत वि‍श्वास।

माइक गोद
धरतीकेँ बि‍छौना
फूलक सेज
सुख पाबै बेजोर
नै ि‍मलै परलोक।

बँासक वंशी
स्वसर बजै मधुर
माया पसारै
स्वार छै अनमोल
सुनै सभ वि‍भोर।

कारी काजर
मुखड़ा ि‍बगारैत
कारी कोइली
मधुर गीत गबै
सभकेँ ललचाबै।

चँादनी राति‍
कहै मनक बात
प्यामसल प्रेमी
प्यामस बुझाबै राति‍
दि‍लसँ करै बात।

देव धर्मसँ
ऊपर माए-बाप
तीर्थक खान
धरती माता अछि‍
हि‍न्दु‍स्तानन महान्।

मान घटै जँ
ि‍नत्यन जाय सासुर
मान बढ़ै जँ
करै अति‍थि‍ सेवा
सेवासँ ि‍मलै मेबा।

कालक मुँह
खुलल छै ि‍वशाल
क्रमश: सभ
समए बचै नहि‍
कोय एहि‍ चक्रसँ।

चमेली फूल
गमकै ि‍दन-राति‍
गजरा बनि‍
देवौकेँ नहि‍ चढ़ै
नारी सजाबै केश।

कमल फूल
ि‍बराजै लक्ष्मीकजी
सुख शान्तिा‍ दै
अन्नश, धनसँ भरै
सभक छै कल्यानण।

सावन मास
जलक बुन्न् पड़ै
आसमानसँ
बेंगक बाजा बजै
खन्ता  डबरा भरै।

पानि‍क बुनन
मोतीसँ महग छै
मोतीसँ नहि‍
ि‍मटै भूखक रोग
पानि‍ ि‍जनगी दैत।

मैथि‍ली भाषा
मौध सन मधुर
जे नहि‍ पढ़ै
वो बाजि‍तौ लजाय
पावै पढ़ि‍ते मान।

मौध मखान
रेहु माछक खान
पानसँ मान
मौर सँ बढ़ै शान
ि‍मथि‍लाकेँ ि‍नशान

आमक फल
मधुर रसदार
फलक राजा
सभकेँ मन भावै
सभकेँ ललचाबै।

सावन मास
रि‍मझि‍म फुहार
प्रेम बढ़ाबै
प्रेमीकेँ ललचाबै
गोरीकेँ तरसाबै।


मोनक बात
की कहब सजनी
समए नहि‍
की भेजब सनेस
दि‍ल दर्दक क्ले‍श।


दि‍लक रोग
नहि‍ कोनो इलाज
प्रेमक भूख
नहि‍ ि‍मटै धनसँ
नहि‍ कोनो दवासँ।


चंचल मन
ि‍चत्त  घबराइत
मन डोलैत
नयन सुखदाय
प्रेमी कहै लजाय।


सोना कंगना
पैर पयजनि‍यँा
नाचै अंगना
घुरि‍ घुरि‍ ताकैत
हमर सजनि‍यँा।


फूलक डारि‍
झुलि‍ सनेश दैत
देशवासीकेँ
सदा प्रसन्नल रहुँ
देशक सेवा करू।


देशक सेवा
माइक सेवा करू
ि‍जनगी भरि‍
धर्मक पालन छै
गरीबक कल्याीण।


सुइत उठि‍
माए-बाप गुरूकेँ
छूउ चरण
ि‍नत्य  बन्दँन करू
कृपा करत देव।


पढ़ि‍ ि‍लखि‍ कऽ
बनु ज्ञानीसँ दानी
करू देशक
ि‍वकास कल्याणणक
रखू उँचा ि‍तरंगा।


सभ अपन
पराया नहि‍ कोय
सूरज चँाद
सभकेँ समझैत
एक समान हि‍त।


राजा दुखि‍त
प्रजा सभ दुखि‍त
जोि‍गक दुख
दुखि‍या सँ छै बेसी
संसार अछि‍ दु:खी।


सेवा करैत
पथ पर चलैत
आगू बढ़ैत
झरना सन आगू
संघर्ष सँ बढ़ैते।


खूनक दाग
ि‍छपाय नहि‍ पावै
पापक भार
धरती नै उठाबै
सत्य  करै से होय।


प्रात:क जल
पीबैत रहु ि‍नत्य।
टटका फल
खाउ जीबैत धरि‍
बनल रहु स्वबस्थि।


रथक चक्का्
उलटि‍ चलै बाट
चाक चलै छै
ठामे ठाम नचैत
दुनु करै दू काम।

बच्चाक बेदरू
खेलैत संगे खेल
कखनु झगड़ा
कखनु करै मेल
पढ़ै छै पाठ एक।


ि‍खलैत फूल
देखैत भौंरा नाचै
रस पि‍बैत
राति‍ बि‍तबै संगै
प्रेमक बात करै।


दि‍लक बात
की कहब सजनी
प्रेमक बँाध
सभसँ मजबूत
तोड़लौं सँ नै टुटै।


खूनक दाग
सभसँ अछि‍ पक्काै
मि‍टैत नहि‍
कारी दागसँ भारी
बड़ पैघ बीमारी।


सच्चाै इंसान
ज्ञान धर्म ईमान
उच्चन ि‍वचारि‍
मानवक श्रृंगार
कार्य करै महान्।


सूर्य रौंद सँ
धरती तैप तैप
शुद्ध होयत
सोना तपै आगि‍सँ
धर्म सँ तपै लोक।


मोछक मान
राखै छै घरवाली
सेवक करै
घरक रखवाली
गाय छै हि‍तकारी।


दुर्जन साधु
नौकर बेईमान
कपटी ि‍मत्र
ई तीनु छी शैतान
क्षणमे लेत प्राण।


खाना खजाना
जनाना पखाना केँ
पर्दामे राखू
जौं राखक बाहर
ि‍बख बाि‍न जाएत।


प्रीत नै जानै
ओछी जाि‍त, नीन नै
टुटल खाट
प्या स नै धोबी घाट
सभ कहै छै बात।


बैल खींचैत
अछि‍ काठक गाड़ी
मनुख खींचै
छै दुि‍नयाक गाड़ी
की बनल लाचारी।



नीमक गाछ
करैत हवा साफ
दवा कऽ साथ।


गंगा कि‍नार
तीर्थक जेना धाम
पवि‍त्र स्ना न।


अति‍थि‍ सेवा
देव धर्मसँ पैघ
मधुर सेवा।


सभ दि‍न नै
होइत छै समान
राजा आ रंक।


अमृत पान
जि‍नगी दैत अछि‍
अमर दान।


मोरक पंख
चमकै चटकि‍ली
प्रेम जगाबै।


धनी बनब
सभकेँ इच्छा। अछि‍
दीन कि‍एक नै।

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