शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012


हाइकू

सगरो शांत
गुमकी पसरल
आकुल मन ।

निःशब्द वन
चिड़ैक फर्र-फर्र
चुप्पी तोड़ल ।

उठलै बिर्ड़ो
प्रलय मचाओल
संकटे प्राण ।

क्षत-विक्षत
धरती खसलय
चिड़ैक खोँता ।

अंडा टूटल
उजरल दुनिया
मोन उदास ।

सोचि-बिचारि
धरती उतरल
खर बिछैले ।

नवका खोँता
चिडैक चहकब
नव लगैए ।

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